BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

उद्भव एवं विकास

संसार की उपलब्ध भाषाओं में संस्कृत प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा में प्राचीन भाषा भारतीय सभ्यता और संस्कृत का बहुत बड़ा भण्डार है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक इस भाषा में रचनाएँ होती रही हैं, साहित्य लिखा जाता रहा है। जिन दिनों लिखने के साधन विकसित नहीं थे, उन दिनों भी इस भाषा की रचनाएँ मौखिक परम्परा से चल रही थीं। उस परम्परा की रचनाएँ जो आज बची हैं, अक्षरशः सुरक्षित हैं। यही नहीं, उनके उच्चारण की विधि भी पूर्ववत् है, उसमें कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ है।

संस्कृत भाषा को देववाणी या सुरभारती कहा जाता है। इस भाषा में साहित्य की धारा कभी नहीं सूखी, यह बात इसकी अमरता को प्रमाणित करती है। मानव जीवन के सभी पक्षों पर समान रूप से प्रकाश डालने वाली इस भाषा की रचनाएँ हमारे देश की प्राचीन दृष्टि की व्यापकता सिद्ध करती हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' (सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है) का उद्घोष संस्कृत भाषा साहित्य की ही देन है।

संस्कृत भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भारोपीय परिवार की भाषा है। ग्रीक, लैटिन, अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी, स्पेनी आदि यूरोपीय भाषाएँ भी इसी परिवार की भाषाएँ कही गई हैं। यही कारण है कि इन भाषाओं में संस्कृत शब्दों जैसी ही ध्वनि और अर्थ वाले अनेक शब्द मिलते हैं। ईरानी भाषा तो संस्कृत से बहुत अधिक मिलती है। पिछले दो सौ वर्षों में यूरोपीय विद्वानों ने संस्कृत का पर्याप्त अध्ययन इन भाषाओं से तुलना के आधार पर किया है। इस दृष्टि से संस्कृत भाषा विदेशों में अत्यधिक आदर पा चुकी है। आज भी यूरोपीय भाषाओं का ऐतिहासिक अध्ययन करने के लिए संस्कृत का अनुशीलन विदेशी शिक्षा-संस्थाओं में अनिवार्य रूप से किया जाता है।

हमारे देश की प्रायः सभी आधुनिक भाषाएँ संस्कृत से जुड़ी हैं। हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगला, उड़िया, असमिया, पंजाबी, सिन्धी आदि भाषाएँ भी इससे विकसित हुई हैं। दक्षिण भारत की तमिल, तेलुगू, कन्नड़ तथा मलयालम में भी संस्कृत के बहुत से शब्द मिलते हैं जिन्हें उन भाषाओं ने अपने ढंग से अपनाया है। इसी प्रकार दक्षिण भारत की इन द्रविड़ भाषाओं से संस्कृत ने भी समय-समय पर अनेक शब्द लिए हैं तथा उन्हें अपने रूप में ढाल लिया है। यही कारण है कि पृथक् भाषा परिवारों के होने पर भी दोनों का परस्पर सामंजस्य है। संस्कृत भाषा ने राष्ट्र की एकता के लिए बहुत बड़ा कार्य किया है। विष्णुपुराण की उक्ति है-

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं प्राहुर्भारती यत्र सन्ततिः ॥

जो देश (वर्ष) समुद्र (हिन्द महासागर) के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में अवस्थित है, उसे पहले के लोगों ने 'भारत' कहा है। वहाँ की प्रजा 'भारती' (भारतीय) कहलाती है।

संस्कृत भाषा सहस्त्रों वर्षों से चली आ रही है। इस अवधि में इसका रूप परिवर्तित होता रहा है। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार आधुनिक भाषाओं तक इसके विकास की प्रक्रिया इस प्रकार रही है-

१. प्राचीन आर्य भाषा काल (६००० ई.पू - .८०० ई. पू.) - इस काल में वैदिक भाषा और प्राचीन संस्कृत भाषा के विकास की प्रक्रिया चलती रही।

२. मध्यकालीन आर्य भाषा काल (८०० ई.पू. - १००० ई.) - इस काल में पालि, प्राकृत तथाअपभ्रंश भाषाओं का विकास हुआ। शिक्षित समाज में संस्कृत का प्रयोग होता रहा तथा अधिकांश प्रामाणिक ग्रन्थ इसी समय में लिखे गए। इस काल में जन-सामान्य में संस्कृत भाषा का प्रयोग बहुत अधिक नहीं रहा, किन्तु इसके प्रति सम्मान का भाव पूर्ववत् बना रहा।

३. आधुनिक आर्य भाषा काल (१००० ई.- अब तक) - इस काल में विभिन्न प्रदेशों में बोली जाने वाली अपभ्रंश भाषाओं से आधुनिक आर्य भाषाओं का विकास हुआ। द्रविड़ परिवार की भाषाओं को छोड़कर हिन्दी, मराठी आदि उपर्युक्त सभी भाषाएँ इसके अंतर्गत हैं। इन सभी भाषाओं में पर्याप्त साहित्य रचा गया। इस काल में भी संस्कृत भाषा द्वितीय युग के समान शिक्षित जन समुदाय में प्रचलित रही तथा इसमें रचनाएँ भी होती रहीं। प्रादेशिक भाषाओं में भी मुख्यतः ग्रन्थ लेखन का कार्य उन्हीं लोगों ने किया, जो संस्कृत के पण्डित थे, क्योंकि संस्कृत भाषा के अभाव में शिक्षा की कल्पना ही नहीं हो सकती थी। इस काल में विदेशी शासन का आरम्भ हुआ, जिससे तुर्की, अरबी और फारसी भाषाएँ भारत में शासकों द्वारा लाई गईं। इनका प्रभाव आधुनिक आर्य भाषाओं के शब्दकोश पर पड़ा, जिससे बहुत से नए शब्द इन भाषाओं से आर्य भाषाओं में आ गए। संस्कृत भाषा इस आदान-प्रदान से अधिक प्रभावित नहीं हुई।

भाषा के रूप

किसी भी भाषा के दो रूप होते हैं- व्यावहारिक अर्थात् बोलचाल में आने वाली भाषा तथा स्थिरता पाने वाली साहित्यिक भाषा। बोलचाल की संस्कृत भाषा का प्राचीन रूप भास, कालिदास, शूद्रक आदि के नाटकों में प्राप्त होता है। सामान्यतः संस्कृत में जो साहित्य सुरक्षित है वह उसके साहित्यिक रूप का प्रतिनिधि है।

निश्चित रूप से बोलचाल की भाषा सरल तथा रूढ़िमुक्त रहती है। दूसरी ओर, साहित्यिक भाषा परिष्कृत तथा अलंकृत होने लगती है। बोली जाने वाली संस्कृत भाषा व्याकरण और उच्चारण के अनुशासन से मुक्त होकर धीरे-धीरे पालि, प्राकृत आदि परवर्ती भाषाओं के रूप में बदल गई, जबकि इसका साहित्यिक रूप क्रमशः कठिनाई की ओर बढ़ा।

संस्कृत का साहित्यिक विकास

प्राचीन आर्य भाषा काल में संस्कृत के अनेक रूप मिलते हैं, किन्तु इस काल के अन्त में जब पाणिनि (७०० ई.पू.) के व्याकरण से इसे परिनिष्ठित रूप मिला, तब रूपों की अस्थिरता समाप्त हो गई और भाषा एक ही रूप में स्थिर हो गई। इस काल के बाद सभी संस्कृत ग्रन्थ इसी नियत भाषा में लिखे गए। इसका परिणाम यह हुआ कि संस्कृत की वाचित धारा पालि, प्राकृत आदि भाषाओं के रूप में परिवर्तित हो गई। संस्कृत का रूप तो आज तक पाणिनि के व्याकरण पर ही आश्रित है परन्तु इसमें अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों का आगमन होता रहा। पाणिनीय व्याकरण का अनुसरण करने वाले संस्कृत साहित्य को लौकिक साहित्य कहते हैं। वस्तुतः इस शब्द का प्रयोग वैदिक साहित्य से भिन्न समस्त संस्कृत साहित्य के लिए किया जाता है। इस अर्थ में लौकिक संस्कृत साहित्य रामायण, महाभारत और पुराणों को भी समाविष्ट कर लेता है, भले ही इनमें पाणिनि के नियमों का यत्र-तत्र उल्लंघन भी है।

संस्कृत में साहित्यिक भाषा की क्रमशः दो धाराएँ मिलती हैं - वैदिक संस्कृत की धारा तथा लौकिक संस्कृत की धारा। वैदिक संस्कृत की धारा भी अनेक रूपों में है। प्राचीनतम वेद ऋग्वेद की भाषा अन्य सर्वत्र एक समान नहीं है। अन्य वेदों में जो भाषा का रूप प्राप्त होता है, उसमें सरलीकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है। शब्दरूपों और धातुरूपों की अनियमितता तथा अनेकता क्रमशः दूर होती जाती है। अन्य वेदों में हमें गद्य भी मिलता है, जबकि पूरी ऋग्वेद संहिता पद्यात्मक है। संहिताओं के बाद उनकी व्याख्याओं के रूप में ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद् ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। यद्यपि इन सब में सामान्य रूप से वैदिक संस्कृत ही प्रयुक्त है, किन्तु वह संस्कृत लौकिक संस्कृत की ओर अभिमुख दिखाई पड़ती है।

वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत के सन्धिकाल में हमें रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थ मिलते हैं। इन ग्रन्थों की भाषा में वैदिक वाक्यों जैसी सरलता है तथा जटिल शब्दरूपों का अभाव है। इन ग्रन्थों की भाषा ने लौकिक संस्कृत साहित्य को विकास का मार्ग दिखाया। इसी काल में संस्कृत व्याकरण के सुप्रसिद्ध लेखक पाणिनि का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने अपने समय में प्रचलित संस्कृत भाषा का व्यापक अनुशीलन करके अष्टाध्यायी नामक ग्रन्थ में भाषा सम्बन्धी नियम बनाए। उन्होंने तुलना के लिए वैदिक भाषा के विषय में भी अपने निष्कर्ष को सूत्र रूप में उपस्थित किया। पाणिनि ने वेदों की भाषा को सामान्य रूप से छन्दस् और लौकिक संस्कृत को केवल भाषा कहा है। पाणिनि के बाद विकसित संस्कृत साहित्य में उसी भाषा का उपयोग होने लगा। कवियों और लेखकों की शैली में जो भी अन्तर रहा हो, भाषा वही रही। अन्य वैयाकरणों ने भी पाणिनि के द्वारा स्थापित भाषा को ही मानक स्वीकार कर अपने-अपने व्याकरण लिखे।

संस्कृत के साहित्यिक विकास को चार चरणों में देख सकते हैं - (१) वैदिक साहित्य (२) रामायण व महाभारत (३) मध्यवर्ती संस्कृत साहित्य तथा (४) आधुनिक संस्कृत साहित्य | शास्त्र ग्रन्थों की रचना सभी चरणों में होती रही थी। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इन चरणों का काल इस प्रकार माना जा सकता है -

(१) वैदिक साहित्य (६००० ई.पू. ८०० ई. पू.),
(२) रामायण व महाभारत (८०० ई.पू. - ३०० ई. पू.),

(३) मध्यवर्ती संस्कृत साहित्य (३०० ई.पू. १७८४ ई. जिसमें महाकाव्य, नाटक, खण्डकाव्य आदि विधाओं के सरल तथा अलंकृत ग्रन्थ लिखे गए)

(४) आधुनिक काल (१७८४ ई. से आज तक)।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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